माना कि तुम्हें शिकायत है , मेरी आदतों से
मेरे लिए काफी है, तुम्हें मेरी आदतों की फिक्र होना।
वो कहते हैं, तुम मुझे सरेआम यूँही बदनाम करती हो
मेरे लिए काफी है, तेरे होठों से मेरा जिक्र होना।
महफिलों का है मजमा , मेरे चारों तरफ़ मगर
तेरी जरूरत समझने को जरूरी है , कुछ रोज मेरा तन्हा होना।
मेरे हुनर के पहचान. की, काबिल नही ये दुनिया
मुझे खुद को.पहचानने को, जरूरी है तेरा आइना होना।
Beautifully composed Divyanshu
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Thank you Monika!
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