नज्म

कुछ इस तरह से मेरी चाहत का हिसाब कर गए

वो खुद को बदनाम करने को, मुझे सरेआम कर गए।

बेमुरव्वत है निगाहें उनकी, कब तक बच पाते भला

वो मुर्दों की महफिल में कत्लेआम कर गए।

चंद दिन उसके शहर में गुजारने की ख्वाहिश की थी मैंने

वो मेहरबान हुए तो मेरा घर नीलाम कर गए।

नाराज तो नहीं, मगर रुठें हों जैसे अरसे से

मेरे मनाने की सारी कोशिशें नाकाम कर गए।

हमने पूछा जो उनके हाल-ए-जिंदगी का बयां

सिमटकर आप ही आप में, मुझको निगाहों में भर गए।

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